आजाद भारत में पहली बार होगी जातीय जनगणना…

Caste Census in India:जिस समय देश इंतजार कर रहा था कि भारत पाकिस्तान पर बम गिराएगा, उस समय भारत की राजनीति के अंदर विपक्ष पर सत्ता पक्ष के द्वारा बम गिराए जा रहे थे। देश का ध्यान पहलगाम के बदले पर था, लेकिन हमारे देश के अंदर चुनाव और जनगणना चर्चा में थे। देश के अंदर केंद्र के अंदर हुई कैबिनेट कमेटी की पार्लियामेंट्री कैबिनेट कमेटी की बैठक ने आज एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए 16वीं जनगणना की घोषणा कर दी। बस इस बार की जनगणना में खास यह था कि इस बार आपसे जाति भी पूछी जाएगी।

Caste Census in India
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पहली बार जाति की गिनती: राजनीति, पहचान और सरकार का नया समीकरण

देश की आजादी से लेकर आज तक हुई जनगणना में केवल आपसे अगर आप एससी अथवा एसटी में आते हैं, तो जानकारी ली जाती थी, लेकिन इस बार होने वाली जनगणना में आपसे जाति भी पूछी जाएगी। जी हां, एक बहुत जबरदस्त तरीके का ट्वीट वायरल हुआ जब पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकियों ने हमला किया और कहा गया बीजेपी के द्वारा, भाजपा आईटी सेल के द्वारा एक बहुत जबरदस्त फोटो वायरल कराया गया, जिसमें कहा गया धर्म पूछा जाति नहीं और अब उसी के ऊपर लोग रिएक्ट कर रहे हैं कि आतंकियों ने नहीं पूछा, लेकिन अब सरकार पूछेगी कि तुम्हारी जाति क्या है।

Caste Census in India
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यह जाति पूछना जहां एक ओर पूरे देश के अंदर अपमानजनक माना जाता था, लेकिन देश के आज के राजनीतिक हालात के चलते जाति पूछना देश के विकास के लिए अग्रणी माना जाएगा। अगर आप किसी आम बोलचाल की भाषा में किसी व्यक्ति से पूछ लें कि भैया, कौन जात से हो, हो सकता है वह उसे ऑफेंड हो जाए। वह यह समझे कि आप उसे नीचा दिखाने के लिए उसके खिलाफ सामाजिक न्याय को न करने के लिए शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन अब सरकारी अधिकारी आपके गेट पर जमा कर पूछेंगे कि भैया, बताओ जरा, कौन सी जाति से हो। तो इस बात को माना जाएगा कि सरकार आपके साथ न्याय करने जा रही है, क्योंकि जब तक आपका नंबर नहीं पता होगा कि आप कितने हैं, तब तक आपको नौकरी कैसे देंगे। क्योंकि सरकार के पास इतनी नौकरियां हैं, बस वह कंफ्यूज हो जाती है कि किसको कितनी नौकरी देनी है। इसलिए जरूरी है कि पहले जान लिया जाए कि तुम कौन सी जाति से हो। बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार के द्वारा की गई इस घोषणा के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। यह बिल्कुल वैसी घोषणा है जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों बड़े खुश हो रहे हैं। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे पहलगाम हमले के खिलाफ भारत सरकार यानी केंद्र सरकार के साथ-साथ पूरा विपक्ष लाभ बंद हो गया था।

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जातिगत जनगणना बनाम राष्ट्रीय एजेंडा: चुनावी रण में मुद्दों की अदला-बदली

इस बार जातिगत जनगणना के मामले में विपक्ष सत्ता पक्ष के साथ आकर खड़ा हो गया है। विपक्ष इसका क्रेडिट लेते नहीं थक रहा है कि हमने सरकार को मजबूर कर दिया कि वे जातिगत जनगणना करने को विवश हुए। वहीं सत्ता पक्ष कह रहा है कि जो लोग आजादी से लेकर आज तक नहीं कर पाए, वह क्रेडिट किस बात का ले रहे हैं? हमारी सरकार को तो अभी ट्वेल्थ ईयर ही चल रहा है। सत्ता के साथ इतने लंबे समय से जुड़े होने वाली कांग्रेस ने आज तक जातिगत जनगणना क्यों नहीं करवाई थी? क्यों नहीं देश की आजादी के समय ही एससी-एसटी को जिस प्रकार से जातिगत जनगणना में गिना जा रहा था, ओबीसी के लिए जातिगत जनगणना पहले क्यों नहीं कराई गई? दोनों के अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन ऐसे में अगर समय का दस्तूर देखा जाए तो सबसे पहले नजर आता हुआ नवंबर में संभावित बिहार इलेक्शन दिखाई पड़ता है।

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बिहार इलेक्शन में जहां एक ओर कांग्रेस और दूसरी तरफ लालू प्रसाद जी की पार्टी इस मुद्दे को लेकर चुनाव में उतरकर नीतीश कुमार कृत गठबंधन, जो एनडीए गठबंधन है, जिसमें बीजेपी और नीतीश जी की वर्तमान सरकार एनडीए ने उन सही है, मुद्दा छीन लिया है। लेकिन यह मुद्दा छीन कर कहीं हम मुख्य मुद्दे से भटक तो नहीं रहे? मुख्य मुद्दा क्या था? आज के समय पर उम्मीद की जा रही थी कि कैबिनेट की बैठक में फाइनली यह कैबिनेट को भी बता दिया जाएगा कि हम POK को कब लेने जा रहे हैं।

पहलगाम की आड़ में राफेल डील: ध्यान भटकाने की रणनीति या सुरक्षा का संकल्प?

भारत ने हाल ही में पहलगाम के बदले की प्रतिक्रिया में केंद्र द्वारा जारी की गई तमाम एडवाइजरी में दो बड़ी घटनाओं को होते देखा है। पर इन दोनों बड़ी घटनाओं के पहले एक घटना हुई जिसने लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं किया। फिर दूसरी घटना हुई और ऐसे में पहलगाम के मसले पर पूरे देश का ध्यान था। वहीं दूसरी ओर केंद्र अपने काम में लगा हुआ था। साथियों, इसी बीच में एक और घटना हुई। एक घटना और भी भारत में लगभग 63 हजार करोड़ में 26 राफेल खरीद लिए गए, यानी कि लगभग 2000 करोड़ रुपए से अधिक का एक राफेल परचेस किया गया। कहा गया कि दुनिया का सबसे महंगा F-35 लगभग 900 करोड़ रुपए का आता है, तो यह राफेल टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के नाम पर तीन गुना कीमत में क्यों खरीदा गया? लेकिन राफेल का मुद्दा नहीं बन पाया क्योंकि राहुल गांधी जी ने पहले वाले लोकसभा चुनाव में राफेल को मुद्दा बनाया जरूर था, लेकिन जनता कनेक्ट नहीं हो पाई थी। ऐसे में पहलगाम के दौर में राफेल परचेज हुआ, जिसका कहीं मीडिया में कवरेज नहीं आया। एक छोटी सी खबर बनी कि राफेल परचेस किए गए।

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लेकिन इसी बीच में आता है कि सुनो, जाति क्या है, बताओ जरा। अब ऐसे में यह वाली जो गणित हुई है, इस गणित को आप कहां ले जाते हुए देखते हैं? क्या वाकई भारत सरकार ने पहलगाम का माहौल बनाकर एक राजनीतिक दांव चल दिया है, या फिर पहलगाम के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए कि युद्ध तो हम का ही लड़ पाएंगे, छोड़ देते हैं? युद्ध की कल्पना लोगों को काफी मोटिवेट कर लिया और करके अब अपने राजनीति में वापस लग जाते हैं। आप इस विषय पर क्या सोचते हैं? अपनी राय फैशन पूरा होने के बाद जरूर दीजिएगा, लेकिन पहले पूरा घटनाक्रम और विपक्ष की जानकारी प्राप्त कर लीजिए|

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अब आपसे पूछा जाएगा कि आप जनरल से हैं, एससी-एसटी से हैं, या ओबीसी से हैं। जो लोग नहीं जानते, उनसे पूछा जाएगा कि यह पूछने से क्या होगा। यह होगा कि सरकार जब सरकारी नौकरियां या फिर गवर्नमेंट कॉलेज में सीटों के लिए मांग करेगी। हालांकि यह माना जाता है कि जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना प्रतिनिधित्व मिले। यह जो मुहिम कांग्रेस ने छेड़ी थी, इस मुहिम के चलते भविष्य में 50% की जो इंदिरा साहनी केस के अंदर सीलिंग है, वह भी तोड़ दी जाएगी और लोगों को ज्यादा रोजगार मिलेंगे। यानी इतने रोजगार की रेलवे में संभवतः डेढ़ करोड़ लोग कुछ लाख पदों के लिए फॉर्म नहीं भरेंगे, क्योंकि सबके लिए जितनी आबादी, उतनी नौकरियां होंगी। हमारे देश में बड़ा इंटरेस्टिंग वाक्य यह है कि कुछ लाख नौकरियों के लिए 140 करोड़ लोगों की राजनीति की जा सकती है।

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जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना से सामाजिक न्याय तक की लड़ाई

एक बार जातिगत जनगणना कराई जाए, फिर यह देखा जाए कि किस जाति के हिसाब से कितना प्रतिनिधित्व सरकारी नौकरियों के अंदर है। फिर यह देखा जाए कि मीडिया में कितना प्रतिनिधित्व है, न्यायपालिका में कितना प्रतिनिधित्व है, उद्योगों में कितना प्रतिशत है, और सामाजिक न्याय स्थापित होगा। जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना रिप्रेजेंटेशन मिला हो, और जब वह रिप्रेजेंटेशन का पता चलेगा, तभी जाकर देश में न्याय की स्थापना होगी। साथियों, सही मायने में इस न्याय की स्थापना के लिए ही इन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इस मामले को बहुत तेजी से उठाया था। इन्होंने यह भी कहा कि हमारी मांग है आर्टिकल 15 के क्लॉज फाइव के तहत जो प्राइवेट कॉलेज के अंदर आरक्षण है, उसका भी प्रावधान सरकार के द्वारा तैयार किया जाए। आर्टिकल 15 के क्लॉज फाइव में इंस्टीट्यूशंस के अंदर सरकारी जो इंस्टीट्यूशंस हैं, उनके अंदर आरक्षण की बातें की गई हैं। सरकारी हो या फिर प्राइवेट, प्राइवेट में अभी तक नहीं है, उसकी बातें लिखी जरूर गई हैं। कांग्रेस इसकी मांग कर रही है। यह 2023 में किया गया राहुल गांधी जी का ट्वीट है, जिसमें उन्होंने कहा था, “जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी।” यह हमारे ओबीसी भाई-बहनों का हक है। कास्ट सेंसेक्स के आंकड़े अभी जारी करो, नई जनगणना जाति के आधार पर करो, महिला आरक्षण को 10 साल बाद नहीं, अभी से लागू करो। यह राहुल गांधी जी की मांग थी।

जातिगत जनगणना पर श्रेय की जंग: मांग किसकी थी, फैसला किसका हुआ?

कांग्रेस इस बात पर फिलहाल खुश है कि उनकी एक मांग को सत्ता पक्ष ने पूरा कर दिया है। वहीं, आपको जिस के अंदर अन्य राजनीतिक दल इस बात को लेकर जहां एक ओर खुशी मना रहे हैं, वही सत्ता पक्ष इस बात से खुश है कि जो कांग्रेस अपने इतने साल के काल में नहीं कर पाई, हमने वह काम कर दिया है। हमने सामाजिक न्याय स्थापित कर दिया है। लेकिन यहां पर देखने योग्य बात यह है कि बहुत ज्यादा बीजेपी के जो भी सिम्पैथाइज़र थे या बीजेपी के कई बड़े नेता थे, उनसे जब-जब जातिगत जनगणना की बात की जाती थी, तब वह इसे विभाजनकारी बताते थे। वह कहते थे कि जाति पूछ ली गई तो लोगों के बीच में विभाजन हो जाएगा। विभाजन से मतलब हुआ कि लोग अपने-अपने जाति के साथ रहने लगेंगे और वह एक दूसरे के साथ नफरत करने लगेंगे। कांग्रेस ने इस बात को आज के दिन बहुत उठाया। यह वही लोग हैं जो कहते थे कि जातिगत जनगणना इसलिए नहीं होनी चाहिए, इससे विभाजन होता है, और आज यही लोग इस काम को कर रहे हैं। इस बात को लेकर आज बीजेपी को गजब तरीके से कंट्रोल किया जा रहा है। हालांकि बिहार इलेक्शन में यह बहुत बड़ा मुद्दा होता, लेकिन इस मुद्दे को जिस तरह से बीजेपी ने फिलहाल के लिए इंडिया लाइन से ले लिया है, आरजेडी से ले लिया है, जिस तरह से कांग्रेस से ले लिया है, अब यह मुद्दा उनके पास से निकलकर बीजेपी के हाथ में आ गया है। वह यह कह पाएगी कि हमने जातिगत जनगणना का अधिकार दिया था। खैर, इस बात को लेते हुए आरजेडी इस बात का गजब क्रेडिट ले रही है, और क्रेडिट ले भी क्यों न, लंबे समय से आरजेडी इसकी मांग जो करती आई थी। इसी के चलते आरजेडी की तरफ से बाकायदा इस बात पर पटाखे फोड़े गए कि हम लोग इतने समय से मांग कर रहे थे, और वह मांग अब जाकर सरकार चुकी है। लेकिन बीजेपी का कहना है कि आप अपनी सरकार में जब थे, तब कुछ नहीं कर पाए, और आप जब अपोजिशन में हैं, जब आपका कोई रोल नहीं है सत्ता के अंदर, उस बात पर खुश हो रहे हैं कि आपने सरकार को झुका दिया। जिस सत्ता के आप भागीदार थे, आप उसे सत्ता में कुछ नहीं कर पाए, लेकिन जिस सत्ता के भागीदार नहीं हैं, उसे सत्ता के अंदर आप कुछ कर पाए। यह बात बड़ी ही रोचक है। यहां पर आरजेडी का तर्क है कि हमने अपनी मांग करके कम से कम सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण तो 2011 में ही मांग लिया था।

सामाजिक न्याय या आंकड़ों का छलावा? जब आरक्षण टकराए जमीनी हकीकत से

इसी सामाजिक न्याय के लिए अत्यंत आवश्यक है कि संसाधनों के ऊपर यह पहले पता हो कि किसको क्या दिया जा रहा है। यह पता हो कि कौन सी जाति का कितना संख्या बल है और उसे संख्या के आधार पर अब संसाधनों का भी बंटवारा हो ही जाए। लेकिन क्या वाकई में हमारे देश में आपको यह बहुत प्रैक्टिकल लगता है? क्योंकि आरक्षण हमारे देश में केवल दो ही जगह पर है, मैं बार-बार इस बात को बोल रहा हूं: वह है सरकारी नौकरी और कॉलेजों के अंदर। अब आप कॉलेज में प्राइवेट कॉलेज भी ले आईं, लेकिन हमारा कौन सा कॉलेज ऐसा है जिसे आप रोजगारमुखी कॉलेज कहते हैं? यहां से पढ़ने के बाद बस अब हम चीन को कंपटीशन देने वाले व्यक्ति बन जाएं।

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जॉब सीकर से जॉब गिवर तक: युवाओं की उम्मीदों के बीच जाति, जज्बात और जनगणना की जंग

हमारे देश के युवा निश्चित ही इस बात को समझेंगे और इवॉल्व होकर दिमाग में यह कहेंगे कि आप हमें रोजगार के अवसर दो हम रोजगार सोते सृजित कर लेंगे हम नौकरी मांगने वाले नहीं नौकरी देने वाले बनेंगे हमारे देश के अंदर जातियां एक व्यवस्था के तहत एक पहचान भले ही बन गई हो लेकिन यह भारत की जो सही महानता है वह तब बनेगी जब हम जॉब सीकर से जॉब देने वाले बनेंगे जब दाता बनेंगे इस बीच में मेंस का मार्केट भी गजब चला मेंस के मार्केट में यह था कि सरकार तो पहलगाम का बदला लेने जा रही थी अचानक टास्क सेंसेक्स पर टर्म कैसा आया यह तो जज्बात बदल दिए जैसा लग रहा है मतलब यह बिल्कुल ऐसा ही था इंतजार किया जा रहा था कि पाकिस्तान से कोई खबर आएगी लेकिन इतनी देर में ट्रेन आती है जो कास्ट सेंसेक्स लेकर आ जाती हैमोदी जी पाकिस्तान को करारा जवाब मिलना चाहिए|

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