Why did the ceasefire fail:
7 मई 2025, एक ऐसा दिन जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच न केवल सैन्य तनाव को बढ़ाया बल्कि भारत के आम नागरिकों के दिलों में कई सवाल भी खड़े कर दिए। सवाल यह नहीं था कि सीज़फायर क्यों हुआ, असली सवाल यह था कि सीज़फायर हुआ कैसे? क्या भारत अपनी रणनीति से पीछे हट गया? क्या यह हमारी विदेश नीति की हार थी? और सबसे गंभीर बात – क्या हम सोशल मीडिया की लड़ाई में भी हारने लगे हैं?
1. “सीज़फायर” शब्द से ही आपत्ति क्यों?
भारत ने कभी आधिकारिक तौर पर यह नहीं कहा कि वह युद्ध में है, लेकिन उसने यह भी नहीं कहा कि वह केवल एक सीमित ऑपरेशन चला रहा है। ऑपरेशन सिंदूर को सरकार ने “आतंकवाद विरोधी अभियान” कहा, लेकिन जब सैन्य कार्रवाइयाँ सीमाओं को लांघ कर दुश्मन के सैन्य प्रतिष्ठानों तक पहुँचे, तो क्या यह सिर्फ ऑपरेशन रह गया था?
यदि सरकार युद्ध की स्थिति को स्वीकार नहीं करती, तो फिर “युद्धविराम” यानी “सीज़फायर” शब्द का इस्तेमाल ही क्यों? इस शब्द का अर्थ ही है – युद्ध रोकना। जब युद्ध घोषित ही नहीं था, तो युद्धविराम क्यों?
2. क्या अमेरिका ने भारत की नीति को ‘हाइजैक’ कर लिया?
7 मई को शाम 5:33 बजे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक ट्वीट आता है:
“मैंने भारत और पाकिस्तान से बात की, दोनों पक्ष युद्ध विराम पर सहमत हो गए हैं।”
सिर्फ इतना ही नहीं, इस ट्वीट के मात्र 30 मिनट बाद भारत के विदेश सचिव प्रेस कॉन्फ्रेंस में आते हैं और बताते हैं कि पाकिस्तान के DGMO ने भारत से संपर्क किया और कहा कि वह युद्ध रोकना चाहता है। भारत ने भी हामी भर दी।

अब सवाल उठता है – क्या भारत ने अमेरिका के कहने पर सीज़फायर किया?
अगर हाँ, तो क्या भारत अब अपनी विदेश नीति में आत्मनिर्भर नहीं रहा? क्या यह विदेश नीति की विफलता नहीं कहलाएगी कि हमारे निर्णय विदेशी नेताओं के ट्वीट से प्रभावित हो जाते हैं?
3. पाकिस्तान के कॉल का सच क्या था?
भारत सरकार ने कहा कि पाकिस्तान की ओर से फोन आया था और उन्होंने आग्रह किया कि युद्धविराम किया जाए। अगर यह सच है तो इसे भारत की रणनीतिक और सैन्य विजय माना जाना चाहिए था। लेकिन अफ़सोस की बात यह रही कि ट्रंप के ट्वीट ने पूरा नैरेटिव बदल दिया।
सोचिए, अगर ट्रंप ने 5:33 पर ट्वीट न किया होता और भारत खुद 6 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह घोषणा करता कि पाकिस्तान ने युद्धविराम की गुहार लगाई है – तो पूरा देश जश्न मना रहा होता।
4. सोशल मीडिया में नैरेटिव की हार
आज युद्ध सिर्फ सीमाओं पर नहीं होता – नैरेटिव और मनोबल का युद्ध सोशल मीडिया पर भी होता है। पाकिस्तान ने अपने नागरिकों को यह यकीन दिला दिया कि उसने भारत को घुटनों पर ला दिया। पाकिस्तान में आतिशबाज़ियाँ हुईं, झूठे वीडियो और मैसेज वायरल हुए कि “भारत हार गया है।”
उधर भारत के लोगों को ऐसा लगने लगा कि शायद हम सच में हार गए हैं – यह एक खतरनाक मानसिक पराजय थी। सोशल मीडिया पर पाकिस्तान ने हमसे नैरेटिव छीन लिया, जबकि जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत थी।
5. भारत का शांतिपूर्ण दृष्टिकोण – मजबूरी या रणनीति?
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में आतंकी ठिकानों को तबाह किया, पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुँचाया, लेकिन हर बार यह स्पष्ट किया कि यह लड़ाई पाकिस्तान की सेना या नागरिकों से नहीं, बल्कि आतंकवाद से है। भारत का दृष्टिकोण था कि यदि पाकिस्तान उकसावे से बचे, तो भारत भी नहीं बढ़ेगा।
यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की परिपक्वता दिखाता है, लेकिन इसका फायदा अमेरिका ने उठाया और राजनीतिक ‘क्रेडिट’ खुद ले लिया।
6. विदेश नीति की समीक्षा – असफलता या व्यूह-रचना?
भारत की विदेश नीति वर्षों से रणनीतिक संतुलन पर आधारित रही है – अमेरिका, रूस, अरब जगत, इज़रायल, सबको संतुलन में रखना। लेकिन इस घटना ने बता दिया कि अब समय आ गया है जब भारत को यह संतुलन छोड़कर स्पष्टता लानी होगी।
अगर हम युद्ध नहीं करना चाहते थे, तो शुरुआत से ही एक “बैक चैनल” डिप्लोमेसी से सब कुछ सुलझाया जा सकता था। लेकिन अगर हमने ठान लिया था कि आतंकियों को सबक सिखाना है, तो फिर अमेरिका के एक ट्वीट से नीति नहीं बदलनी चाहिए थी।

7. समय और संचार की चूक – सबसे बड़ी चूक
भारत के विदेश सचिव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए देर की, और इस खाली समय में अमेरिका ने नैरेटिव हथिया लिया। सिर्फ 2 घंटे का अंतर था, लेकिन यही 2 घंटे पूरे युद्ध का नैरेटिव पलट सकते थे।
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) May 10, 2025
समय ही सबसे बड़ा हथियार था – और वही छूट गया।
8. पाकिस्तान का पलटी मारना – फायरिंग और उल्लंघन
सीज़फायर की घोषणा के केवल 3 घंटे बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के कई सेक्टरों में फायरिंग शुरू कर दी – अखनूर, नौशेरा, पुंछ, सांबा, श्रीनगर तक गोलियाँ चलीं। यह दिखाता है कि पाकिस्तान की मंशा कभी भी शांति नहीं थी, सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को “शांति प्रिय” दिखाने का ढोंग था।
*INCOMING DRONES ACTIVITY SPOTTED*
— Barmer District Collector & Magistrate (@BarmerDm) May 11, 2025
Pls stay inside your houses and observe blackout.
DM Barmer
9. भारतीय जनता की पीड़ा और भ्रम
भारत की जनता आज भ्रमित है – क्या हम जीते या हारे? हमारे मन में यह सवाल है कि अगर हम जीते, तो क्यों हमें समझाया जा रहा है कि हमें चुप रहना है? और अगर हार गए, तो हमारी इतनी कुर्बानियाँ क्यों हुईं?
यह भ्रम सरकार की संचार रणनीति की विफलता है। जनता को सच और साफ़ तरीके से बताना चाहिए कि भारत ने अपने लक्ष्य पूरे किए, पाकिस्तान बैकफुट पर आया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दबाव में हमको युद्ध रोकना पड़ा।
10. क्या अब हमें विदेश नीति बदलनी होगी?
हाँ, अब समय आ गया है कि भारत को अपनी विदेश नीति में स्पष्टता लानी होगी। “नो क्लियर स्टैंड” अब काम नहीं करेगा।
- अगर हम रूस के साथ हैं – तो स्पष्ट हों।
- अगर अमेरिका की बात नहीं माननी – तो उसका विरोध करें।
- अगर आतंकवाद के खिलाफ हैं – तो पाकिस्तान को बिना पर्दा डाले दोषी ठहराएँ।
निष्कर्ष: क्या सीज़फायर भारत की हार है?
नहीं, यह भारत की सैन्य हार नहीं है, बल्कि नैरेटिव की हार है। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में जो हासिल किया वह रणनीतिक विजय थी। लेकिन विदेश नीति की अस्पष्टता, अमेरिका के ट्वीट की टाइमिंग, और सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी नैरेटिव ने भारत को अपनी ही जनता के सामने असहाय बना दिया।
हमें अब सिर्फ युद्ध नहीं, बल्कि नैरेटिव की लड़ाई भी जीतनी होगी – शब्दों में, ट्वीट में, मीडिया में और सोशल मीडिया पर।
आपका क्या मानना है?
क्या भारत को अपनी विदेश नीति में बदलाव करना चाहिए?
क्या सीज़फायर वास्तव में सही निर्णय था या एक कूटनीतिक भूल?
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